Monday, 4 June 2018

Aur Maja Do Na Jaanu और मजा दो न जानूं

यह कहानी आप Kamvasna श्रेणी के अंर्तगत पढ़ रहे हैं…
”सुधा मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं और तुम्हें अपनी बनाना चाहता हूं…।“
उस रोज एकांत में मौका पाते ही बंटी ने सुधा को अपनी बाहों में भींच लिया। फिर उसके सुर्ख होंठों को कसकर चूमता हुआ बोला, ”मेरा कहा मानो तो कहीं भाग चलो। आखिर क्यों उस कंगले बुड्ढे के साथ अपनी जिन्दगी बर्बाद कर रही हो?“
सुधा कुछ नहीं बोली उसने बस अपना सिर बंटी के कंधों पर झुका दिया… इससे बंटी का हौसला बढ़ गया। उसने उसे गोद में उठाया और कमरे के अंदर ले गया। फिर वह उसके नाजुंक अंगों से छेड़छाड़ करने लगा, तो सुधा कसमसाई, लेकिन बोली कुछ नहीं। सुधा को कुछ कहते हुए न देखकर बंटी अपना चेहरा उसके सीने पर रगड़ने लगा, तो सुधा सीत्कार कर उठी। फिर मस्ती के जोश सुधा ने ना जाने कब बंटी को अपने ऊपर खींच लिया उसे खुद पता नहीं चला।
बंटी तो यही चाहता था। दूसरे ही पल उसने सुधा के कपड़े उतार फंेके। सुधा के नशीले जिस्म और दूधिया उभारों को देखकर वह मतवाला हो उठा और उन्हें धीरे-धीरे प्यार से सहलाने लगा। फिर जैसे ही बंटी का हाथ रेंगता हुआ सुधा की जांघों के ऊपर आया, सुधा मतवाली हो उठी और सिसियाती हुई बुरी तरह बंटी से लिपट गयी और उसके कपड़े नोंचने-खसोटने लगी।
”बंटी आज जोर-जोर से बजाओ मेरे प्यार की घंटी…।“ मादक सिसकियां भरती हुई बोली सुधा, ”तुमने मेरे अंग-अंग में मस्ती की लहर भर दी है। आज चटका डालो मेरी एक-एक नस को, हर अंग को।“
”देख लो मेरी रानी।“ बंटी कसकर उसके उभारों को मसलता हुआ बोला, ”बाद में बस-बस की रट न लगाने लग जाना।“
”मैं तो तुम्हारी बांहों में और…और की रट लगाना चाहती हूं… बस…बस की नहीं।“ मुस्करा के बोली सुधा, ”अपनी सुधा की आज पूरी सुधा मिटा डालो। यानी मेरी प्यास को बुझा दो।“

फिर देखते ही देखते दोनों से पूरी तरह नग्न हो गये और बिस्तर पर आकर एक-दूसरे को पछाड़ने लगे।
बंटी, सुधा के ऊपर आते हुए बोला, ”क्यों जानेमन, बोल दूं हमला तुम्हारी प्यार की खोली में?“
”पर हमला शानदार होना चाहिए मेरे राजा।“ सुधा भी एक आंख मारती हुई बोली, ”मुझे भी लगना चाहिए कि मेरी खोली में वाकई कोई मेहमान आया है।“
”मेहमान तो आ जायेगा मेरी जान, तुम्हारी खोली में।“ सुधा के उठे हुए नितम्बों पर हाथ फिराता हुआ बोला बंटी, ”पर तुम्हें भी मेरे मेहमान का अच्छे से ख्याल रखना होगा। उसे खूब प्यार देना होगा।“
”हां…हां… मेरे बलम वादा करती हूं, मेरी ‘खोली’ में आते ही तुम्हारा ‘मेहमान’ इतना मजा लूटेगा कि मेरी ‘खोली’ से निकलने का उसका मन ही नहीं करेगा।“
फिर क्या था, तपाक से बंटी के सख्त मेहमान ने सुधा की ‘खोली’ में एन्ट्री मार ली। सुधा बेचैन होकर बोली, ”ओह…उई मां… कितना हट्टा-कट्टा मेहमान है। लगता है बहुत खेला खाया है, तभी तो आते ही मेरी खोली चरमराने लगी है। जरा अपने मेहमान से कहो, कि फिलहाल आराम से अपनी खातिरदारी करवाये।“
”मैंने तो पहले ही कहा था बस…बस न करना।“
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Saturday, 2 June 2018

Didi Ki Sexy Saheli Ko Usi Ke Ghar Bajaya दीदी की सेक्सी सहेली को उसी के घर बजाया

यह कहानी आप Sex Stories श्रेणी के अंर्तगत पढ़ रहे हैं…
वह गर्मियों के दिन थे। मेरी दीदी मुझसे करीब सात-आठ साल बड़ी थी। मेरी दीदी बी.ए. की पढ़ाई कर रही थी। मेरी दीदी कई सहेलियां हमारे घर में आती-जाती रहती थीं, जो कि मेरी दीदी की हम उम्र थीं। दीदी की सभी सहेलियां एक-से-बढ़कर सुंदर और हसीन थी। मगर सबसे सुंदर जो थी उसका नाम था पायल। मैं दीदी की सभी सहलेलियों से अच्छा घुला मिला हुआ था। मैं सभी को दीदी कहा करता था… पर ना जाने क्यों मुझे पायल दीदी को दीदी कहने में झिझक महसूस होती थी…शायद मेरा मन कुछ और ही चाह रहा था…
जैसे मुझे पायल अच्छी लगती थी…शायद दीदी को भी वह ज्यादा पसंद थी। वह दीदी की खास सहेली थी..तभी तो खाली वो ही कभी-कभी रात पढ़ने लिए हमारे घर पर आया करती थी और दीदी और पायल दीदी के बेडरूम में रात-रात तक पढ़ाई किया करते थे।
कभी-कभी तो रात को ज्यादा देर हो जाने पर मैं पायल को अपनी बाईक से घर छोड़ आया करता था।
एक दिन की बात है। हर रोज की तरह उस दिन भी पायल.. हमारे घर दीदी के साथ पढ़ने आई थीं… मगर उस रोज वह उदास सी लग रही थी। मुझसे भी ज्यादा कुछ नहीं बोली…
रात को उसे ज्यादा देर हो गई…तो मैं ही उसे उसके घर छोड़ने अपनी बाईक से चल पड़ा…इस बीच भी वह खामोश ही रही…
फिर जब उसका घर आ गया..और मैं जाने को हुआ…तो इस बार वह बोल पड़ी, ‘‘अंदर नहीं आओगे।’’
‘‘नहीं…नहीं..वैसे भी इतनी रात को तुम्हारे घरवाले भी डिस्टर्ब हो जायेंगे…।’’
‘‘कोई डिस्टर्ब नहीं होगा…।’’ हौले से बोली पायल, ‘‘कोई घर में होगा तो डिस्टर्ब होगा ना…’’ इसबार उसके चेहरे पर थोड़ी मुस्कान आई और वह बोली, ‘‘वैसे भी जिम्मेदरी उठाई है तो पूरी निभाओ…अंदर तो तुम्हें आना ही पड़ेगा…घर के अंदर तक छोड़ो मुझे।’’
सुनकर मेरा दिल जोरों से धड़कने लगा…पायल अकेली..वो भी रात को…
मैंने पूछा, ‘‘क्यों कहां है सब?’’
‘‘वो लोग शादी में गये हैं…सुबह तक ही आयेंगे…’’
अब तो मैं पूरा अंदर तक रोमांचित हो उठा…फिर ये सोचकर शांत हो गया कि आखिर मेरा काम तो बनेगा नहीं…वो मुझसे बड़ी है और…
अभी मैं सोच ही रहा था कि वो मेरा हाथ पकड़ कर ले जाती हुई बोली, ‘अब चलो भी अंदर।’’
हम दोनों अंदर आ गये और पायल ने अंदर से दरवाजा बंद कर लिया..
फिर बोली कुछ लोगे…
‘‘मैंने कहा इतनी रात को एक बजे..?’’
‘‘तो क्या दिन में लोगे?’’ वह मजाक भरे स्वर में बोली, ‘‘मेरा मतलब है कि अभी रात को घर में आये हो..तो रात को ही दूंगी ना खाने-पीने को।’’
मैं पायल के मजाक का अर्थ समझ गया था…और अंदर ही अंदर खुश भी हो गया था …चलो लड़की कुछ मूड में तो आई…
फिर मैंने पूछ ही लिया, ‘‘वैसे पायल दीदी…तुम आज घर आईं तो इतनी उदास क्यों थी?’’
‘‘कुछ नहीं…ऐसे ही?’’
‘‘बताओ ना।’’ कहकर मैेंने पायल के हाथ पर हाथ रख दिया।
उसने एक नजर मेरी ओर देखा और बोली, ‘‘तुम अभी नहीं समझोगे?’’
‘‘मैं कोई बच्चा थोड़े ही हूं जो नहीं समझूंगा…ये बच्चा बड़ा हो गया है अब?’’
‘‘और क्या-क्या बड़ा…’’ इतना ही बोली पायल और हंस पड़ी।
मैं भी थोड़ा शरमाया और हंसने लगा…
मैंने बोला, ‘‘दीदी के सामने तो तुम मुझसे ऐसी बातें नहीं करतीं..’’
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‘‘कैसी बातें…मैंने कौन सी गलत बात कही?’’
फिर भी मैंने भी बात पलट दी…‘‘अच्छा छोड़ो और बताओ कि उदास क्यों थीं?’’
फिर वही पायल जो अभी हंस रही थी अचानक उसकी आंखों में पानी भर आया…
और बोली, ‘‘एक बताओ मैं क्या सुंदर नहीं हूं…बदसूरत हूं।’’
‘‘आप तो इतनी सुदंर हो कि मैं छोटा ना होता तो अभी तुमसे शादी कर लेता..’’
मेरी इस बात पर वह थोड़ा मुस्कराई और बोली, ‘‘तो फिर बाकी सारे लड़के मुझे क्यों ठुकरा देते हैं…जिससे पापा मेरी शादी की बात चलाते हैं..कभी लड़के की मां ना पंसद कर देती है.. तो कभी लड़के की बहन.. तो कभी खुद लड़का…’’
‘‘अरे बदनसीब हैं वो लोग…जो ऐसा करते हैं’’ मैंने जोश में आकर कह दिया, ‘‘मैं होता ता न फौरन तुमसे शादी करके अभी तक 12-13 बच्चों की फौज खड़ी कर देता।’’
मेरी इस बात पर वह फिर से अचानक जोरों से हंसने लगी और उसने मुझे सीने से लगा लिया…उसके गोल-गोल सेबांे की छुअन मुझे अपनी छाती पर महसूस हुई तो मेरा एनटीना खड़ा होकर सेक्स के सारे सिग्नल पकड़ने लगा…
फिर वह बोली, ‘‘काश ऐसा हो पाता…’’ कहकर उसने मेरे होंठों को चूम लिया…मैं सन्न रह गया…
मुझसे कुछ कहते नहीं बन पा रहा था…मैं सोच रहा था कि क्या करूं…मेरे हाथ उसके सेबों पर जाने के लिए मचलने लगते…मगर फिर में शर्म और झिझक में रूक जाता…
फिर अचानक उसने खुद ही मेरा हाथ पकड़ कर अपने सख्त उभारों पर टिका कर कहा, ‘‘मेरा दिल देखो कैसे धड़क-धड़क कर कह रहा है।’’
‘‘क्या कह रहा है?’’ मैं भी बोल पड़ा..
‘‘खुद ही सुन लो।’’ इस बार उसने मेरा मुंह अपनी छाती से चिपका लिया…
उसके नरम-मुलायम संतरे मेरे मुंह पर नाच रहे थे..मैं जानबूझ कर उन्हें अपने मुंह से दबा-दबा कर महसूस कर रहा था…
‘‘झिझको नहीं..खुलकर प्यार करो इन्हें..।’’ कहकर पायल ने अपनी टी शर्ट उतार दी…
अंदर ब्रा में उसके संतरे बहुत प्यारे लग रहे थे…मैं उन्हें देखकर मदहोश होने लगा…
मैंने उसकी ब्रा उतार कर अलग कर दी…अब तो उसके खिले हुए संतरे मचलते हुए बाहर फड़फड़ाने लगे… मैं बुरी तरह उन्हें हाथों से मसलने लगा… मुंह में लेकर चूमने लगा और उन प्यारे-प्यारे संतरों का रस चूसने लगा…
पायल भी मदहोश होकर बोली, ‘‘लगता है पहली बार देख रहे हो किसी लड़की के इन संतरों को’’ पायल ने अपना एक संतरा पकड़ कर मेरे मुंह में ठूंस दिया..‘‘लो और अच्छे से चूसों इसका रस…सब रस निचोड़ डालो…’’
मैं दीवानों की तरह उसके सतरों का रस निकालने लगा और पायल,, मेरे कपड़ों को निकालने में बिजी हो गई… देखते ही देखते हम दोनों पूरी तरह नग्न हो गये…
फिर पायल ने जब मेरे केले के हाथों में लिया…तब तो मैं जैसे इस दुनियां का ही नहीं रहा…वह कातिल अदा से बोली, ‘‘मेरे संतरों का रस तो खूब पी लिया…अब जरा मैं भी तुम्हारा केला चख कर देखूं… कितना स्वादिष्ट है…’’
कहकर पायल,,,मेरे केले को ऐसे चाटने चूमने लगी,, जैसे सचमुच मेरा केला उसे बहुत ही स्वादिष्ट लग रहा था… मुझे इतना मजा आ रहा था कि मैं बता नहीं सकता…वो किसी पेशेवर काॅलगर्ल की तरह मेरे केले के साथ पेश आ रही थी। फिर जब मेरे केले से पानी टपकने लगा…तो वह हंसकर बोली, ‘‘वाह पहली बार जाना कि केले में भी रस होता है.. देखो तो कैसे टपक रहा है…’’
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Tuesday, 13 February 2018

कविता आन्टी की प्यास Kavita Aunty Ki Pyas

जबसे कविता के पति का एक्सीडेन्ट हुआ था..तब से उसकी जिस्मानी प्यास और भड़क गई थी… उसके पति राजेश.. का प्राइवेट पार्ट बेजान-सा हो गया था। उसमें कोई हरकत नहीं होती थी… मगर कविता के जिस्म में हरकत ही हकरत होती थी… और वह चाहती थी कि उसके पति का शैतानी अंग उसकी अंधियारी खोली में घुसकर खूब कामुक हरकत करे… मगर अब तो कविता के लिए ये सब जैसे सपना ही बनकर रह गया था…
कविता जब बहुत प्यासी होती तो रात को बेडरूम में पति के मेहमान की अपने हाथों से खूब आवभगत करती… मुंह की गरम सांसों से मेहमान को सख्त करने की कोशिश करती… मगर पति का निठल्ला मेहमान और भी बेजान होकर सो जाता था। इससे कविता तड़प कर रह जाती थी..
उसकी प्यास दिन-पर-दिन बढ़ती ही जा रही थी… जब पति से कुछ नहीं होता..तब ऐसे में वह खुद अपनी सूखी जमीन पर अंगुलियों का हल चला कर मस्त हो जाती थी और फिर उसकी सूखी जमीन गीली होकर तृप्त होने का संदेशा दे देती थी।
आखिर कबतक वह खुद ही अपनी गुलाबी जमीन पर अंगुलियों का हल चला-चला कर काम चलाती… अब उसे किसी पुरूष की सख्त जरूरत महसूस हो रही थी..जो उसकी प्यास को शांत कर सके.. उसकी एक-एक हड्डीयों को बिस्तर पर चटका सके…
एक दिन जब कविता के बेटे सुनील का दोस्त राजू जब उसके घर आया तो उसे देखते ही कविता के मुंह में पानी आ गया… राजू यूं तो 17 साल का था…मगर हटटा-कट्टा होने के कारण वह गबरू जवान लगता था…
अब कविता ने राजू के साथ ही अपनी जिस्मानी जरूरत को पूरा करने की ठान ली… अब राजू जब भी घर आता..तो उसकी खूब आवभगत करती…अच्छा-अच्छा खाना बनाकर खिलाती… और कभी-कभी तो पैसे भी दे दिया करती… राजू भी कविता से काफी घुल-मिल गया था.एक दिन राजू घर आया तो कविता बोली…‘‘राजू पेपर नजदीक आ गये हैं…पढ़ाई वगैरह भी कर रहे हो या नहीं…’’
‘‘हां आंटी.. रोज रात को जाग कर पढ़ाई करता हूं…मगर नींद आने की वजह से ज्यादा नहीं पढ़ पाता..।’’
‘‘अरे तो ऐसा करों ना कि तुम रात को यहां आ जाया करो..मेरे बेटे सुनील के साथ रात को पढ़ाई कर लेना…साथ में पढ़ागे तो नींद भी नहीं आयेगी जल्दी…।’’
‘‘जी आन्टी.. आज मैं मम्मी से पूछ कर आ जाऊंगा।’’
अब तो कविता की खुशी का ठिकाना नहीं रहा…उसने राजू के साथ… तक सेक्स का बैंड बजाने का पूरा मामला फिट कर लिया था।
जब राजू रात को घर आया…तो देखा कि कविता ने खुले गले की मैक्सी पहनी हुई थी…जिसमें से उसके दोनों कबूतर के सिर साफ नजर आ रहे थे… राजू की नजर वहां पड़ी थी एक बार उसका दिल भी धड़क उठा… मगर फिर ये सोचकर की दोस्त की मम्मी है… नजरें फेर ली..
कविता ने राजू की चोर नजरों को ताड़ लिया था… उसे लगा कि उसका पहला निशाना लग गया है…
फिर राजू, सुनील के कमरे में चला गया और दोनों पढ़ाई करने लगे…
फिर रात के लगभग सवा एक बजे तक सुनील और राजू अलग-अलग बेड पर सो चुके थे…
सुनील तो राजू के पहले ही गहरी नींद में सो गया था..मगर राजू देर तक पढ़ने के बाद अभी-अभी सोया था…
राजू को नींद आ ही थी.. कि तभी उसे रात के अंधेरे में महसूस हुआ कि कोई कोमल मुलायाम हाथ..पैन्ट के उपर से उसके गिटार को छेड़ रहा है… राजू नींद में ही मस्ती में खोने लगा…उसे लगा जैसे वह सपना देख रहा है…मगर उस समय उसकी हालत और भी मस्त हो गई जब उसे लगा कि उसका गिटार कपड़ों से आजाद होकर किसी नरम पकड़ में आ गया है…
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Thursday, 25 January 2018

सख्त मर्द की प्यासी सहेलियां Sakhat Mard Ki Pyasi Saheliyan

रीमा और सीमा बचपन की सहेलियां थीं। ये इत्तेफाक ही था, कि दोनों एक साथ स्कूल में पढ़ीं, काॅलेज में पढ़ीं, एक ही कम्पनी में नौकरी की, फिर दोनों का एक साथ सरकारी नौकरी में सिलेक्शन भी हो गया। वह सरकारी महकमा थाµ रेलवे मिनिस्ट्री।
दोनों की एक साथ नौकरियां लगीं और शादी भी जुलाई के महीने में हुई थी। शादी करके दोनों सहेलियां करोल बाग चली गई थीं।
यहां भी इत्तेफाक ने पीछा नहीं छोड़ा… दोनों सहेलियांे की शादी हालांकि अलग अलग तारीख को हुई थी, पर महीना एक ही था।
जुलाई का महीना। जहां दोनों की शादी हुई वह ईलाका भी एक ही था। यानि करोल बाग। दोनों का ससुराल एक ही गली में था। मकानों के बीच फासला भी ज्यादा नहीं था।
एक सहेली दो नम्बर के मकान में रहती थी, तो दूसरी सहेली दस मकान छोड़कर रह रही थी। दोनों के पति बिजनेसमैन थे और उनका घर-परिवार बेहद खुशहाल था। फिर दोनों सहेलियां भी नौकरियां कर ही रही थीं।
दोनों ने इसी शर्त पर शादियां की थी, कि वे सरकारी नौकरियां नहीं छोड़ेंगी। वैसे भी सरकारी नौकरियां मिलती ही कहां है? लगी लगाई सरकारी नौकरी छोड़ना भी बुद्धिमानी का काम नहीं, इसलिए दोनों के पतियों ने दोनांे सहेलियों की ये मांगे मान ली थीं, तभी दोनों की शादियां सम्भव हुई थी।
रीमा तथा सीमा जनकपुरी की रहने वाली थीं। उनके माता-पिता भी खूब पैसांे वाले थे, इसलिए आर्थिक अभाव तो दोनों सहेलियों ने कभी देखा ही नहीं था। दोनों विदेशी कल्चर की दिवानी थीं। खासकर अमेरिकन सोसियल कल्चर तथा इंग्लैण्ड के सामाजिक कल्चर की दोनों दिवानी थीं।
दोनों सहेलियां काॅलेज में पढ़ते वक्त ही इन दोनों देशों की दो-तीन दफा सैर कर आई थीं। उसी सैर-सपाटे के दौरान उनका दिमाग भारतीय न रहकर अमेरिकन या इंगलिश बन चुका था। उन्हें कई विदेशी कल्चर की बातें पसन्द आई थीं। पर कई बातें या रिवाज बेहद घटिया या गलत लगे थे।
वक्त का पहियां घूमता रहा और दोनों सहेलियों की शादियां हो गई थीं। शुरू-शुरू में तो दोनों सहेलियां यानि रीमा तथा सीमा अपने यौनात्मक वैवाहिक जीवन से प्रेमपूर्ण रूप से संतुष्ट तथा खुशहाल थीं।
पर पिछले एक-दो सालों से दोनों के पति अपनी पत्नियों के साथ बेवफाई कर रहे थे। यहां भी एक दोहरा इत्तेफाक दोनों सहेलियों की जिन्दगी में अटैच हो गया था। यानि दोनों सहेलियों के पति बेवफाई कर रहे थे और दोनों सहेलियों की दो-दो लड़कियां पैदा हुई थीं।
एक दफा जब सीमा ने अपनी सहेली रीमा का डेट आॅफ बर्थ पूछा, तो रीमा ने बताया, ‘‘मेरा तो डेट आॅफ बर्थ 10 जुलाई, 1982 है।’’
तब हैरान होते हुए सीमा ने भी कहा, ‘‘अरे! मेरा भी डेट आॅफ बर्थ यही है।’’ उसने उत्सुकतावश पूछा, ‘‘टाईम तथा बर्थ प्लेस क्या है?’’
‘‘दिल्ली में दस बजकर आठ मिनट सुबह के वक्त पैदा हुई थी मैं।’’
रीमा ने बताया तो सीमा चैंक गई, ‘‘ओह माई गाॅड! मेरा टाईम भी लगभग यही है यार!’’
‘‘तभी मैं कहूं हमारे साथ इतना इत्तेफाक क्यों हो रहा है?’’ रीमा मुस्करा कर बोली, ‘‘हमारा डेट आॅफ बर्थ तथा समय जो एक है। पिछले जन्म में जरूर हम दोनों सगी बहनें रही हांेगी।’’
‘‘तो इस जन्म में भी हम बहनों से कम थोड़े ही हैं।’’ सीमा भी बोली।
जब दोनों सहेलियों को अपने पति की बेवफाईयों के बारे में पता चला, तो उनके दिल भी मचल उठे। उन्होंने अपने पतियों को कुछ नहीं कहा, वे दोनों अपने पतियों को बेवफाई करने के लिए उकसाती रहीं और कहती रहीं, कि उनकी तरफ से उन्हें पूरी छूट है।
एक अय्याश पति को इससे बड़ी छूट मिल ही नहीं सकती। अंधा क्या चाहे, दो आंखें। बस दोनों अय्याश प्रवृत्ति के पतियों को पत्नियों की तरफ से छूट क्या मिली, दोनों आवारा भंवरे बन गये। पर उन्हें यह मालूम नहीं था, कि आवारा भंवरियां भी कुछ कम नहीं होतीं।
दरअसल रीमा तथा सीमा का भी अपने पति के एक ही तरह के यौनिक व्यवहार की वजह से उस यौनात्मक व्यवहार से उब चुकी थीं। उन्हें अपने काॅलेज के दिन याद आने लगे, जब कई सुन्दर तथा बलिष्ठ लड़के अपनी जान हथेली में बन्द करके खड़े रहते थे। वे अपनी जान को हथेली में बन्द करके हिला-हिला कर कहते थे, ‘‘मेरी जान, यह जान तुम्हारे लिए है।’’
यहां तक कि कई लड़के तो लड़कियों के बाथ में घुस जाते थे और जब लड़कियां या टीचर उन्हें यह समझाती थीं, कि यह बाथरूम तो केवल महिलाओं के लिए या लड़कियों के लिए है, तो ऐसी सूरत में कई बदमाश किस्म के लड़के अपना वस्त्र खोलकर अपने नीचे के ‘पड़ोसी’ को दिखाकर पूर्णतः बेशर्म होकर कहते, ‘‘मैडम गुस्ताफी माफ हो, मगर हमारा ये ‘पड़ोसी’ भी महिलाओं के लिए ही है। इसे ऊपर वाले ने ही महिलाओं के लिए बनाया है..’’
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Wednesday, 24 January 2018

मेरी प्यास बुझाओ ना Meri Pyas Bujhao Na

वह अपने पति से न जाने किस बात पर खफा थी, उसे स्वयं मालूम नहीं था। हालांकि लिन टस्की मीडलर ने अपने प्रेमी से प्रेम-विवाह किया था। पर प्रेम-विवाह से पहले ही दोनों ने प्रेम गलियों की अच्छी तरह से सैर कर ली थी। लिन एवं उसका प्रेमी सेन्डी होवर्ट दोनों ही नौकरी करते थे। उनकी आय सीमित थी।
सेन्डी होवर्ट पोपर्टी डीलर का काम करता था। उसकी कद-काठी औसत दर्जे की थी, पर शक्ल-सूरत से वह हीरो दिखता था।
लिन टिस्की, काॅल सेंटर में प्रमुख टेली काॅलर कम मैनेजर थी। लिन का साईड बिजनेस था एशियन मर्दों से शादी कर उन्हें ग्रीन कार्ड दिलवाना या अमेरीकी नागरिकता दिलवाना।
इस साईड बिजनेस में उसके प्रेमी सेन्डी ने ही उसे धकेला था। हालांकि लिन अपनी छोटी-सी नौकरी में ही खुश थी, पर सेन्डी की तमन्ना थी जल्दी से जल्दी अमीर बनना और अपना मकान खरीदना, इसलिए सेन्डी अपनी पत्नी की कई एशियन अप्रवासियों से शादियां करवा कर तगड़ा पैसा कमा रहा था और उस पैसे को इकट्ठा भी कर रहा था।
दूसरी तरफ स्वयं सेन्डी कड़ी मेहनत कर रहा था। रात-दिन प्रोपर्टी सेल परचेज तथा प्रोपर्टी कागजात बनवाना, बिजली के बिल भरना तथा नाम में परिवर्तन करवाना, जैसे मुश्किल कार्य करवाता था और रात को 11 बजे थकान मिटाने के लिए शराब-शैम्पेन का सहारा लेता। फिर रात को दो बजे घर पहुंचता और खाना खाये बिना ही सो जाता था।
सुबह लिन टस्की 9 बजे तैयार होकर ड्यूटी पर निकल जाती थी। सारा दिन आॅफिस में काम करती थी, जब घर आती थी, तो वह घर में अकेली होती थी। पति देव 12 बजे सोकर उठते थे और एक बजे ड्यूटी पर पहुंचते थे।
एक ही दिन दोनों की मुलाकात होती थी। वह भी शुक्रवार को, क्योंकि शुक्रवार के दिन दोनों की छुट्टी होती थी।
पैसा कमाने के धुन में सेन्डी अपनी पत्नी से दूर होने लगा था और लिन को भी काफी दिनों से जोशीला प्रेम नहीं मिला था।
दोपहर का समय था। लिन लंच करके अपनी सीट पर बैठी थी, कि तभी उसे बाॅस ने बुलवा लिया। लिन की तंद्रा भंग हुई। वह जाना तो नहीं चाहती थी, पर उसे जाना पड़ा।
बाॅस के केबिन में दाखिल होते ही लिन ने कहा, “यस सर!“ कहकर लिन, बाॅस की टेबल के सामने पड़ी कुर्सी पर बैठ गई।
बाॅस बोला, “देखो लिन, कुछ फोन नम्बर हैं। नाम-पता भी इस पर लिखा है। वाईफ की लाईफ इन्श्योरेन्स से लोन लिया था, अब डिफाल्टर बन गया है। सरकारी मुलाजिम है। इसे काॅल करके मंथली इन्स्टाॅलमेन्ट देने के लिए मजबूर करो। यदि यह केस तुमने साॅल्व कर दिया, तो तुम्हारी सैलरी का 20 प्रतिशत ईनाम भी दिया जायेगा तुम्हें।“
उस दिन पहली दफा लिन ने अपने बाॅस को हसरत भरी निगाहों से देखा, वरना पहले उसने अपने बाॅस को कभी उस नज़र से नहीं देखा था। उस दिन बाॅस उसे काफी खूबसूरत लग रहा था। लिन की माहवारी खत्म हुए अभी एक दिन हुआ था। लिन का चेहरा खिला हुआ था। बदन आकर्षक बन गया था, पर उसक मन अशांत था।
बाॅस, लिन को देखकर हैरान था। बाॅस जो कुछ कह रहा था, लिन उसे कतई सुन नहीं पा रही थी। यह बात बाॅस ने नोट कर ली थी।
बाॅस अपनी कुर्सी से उठा और लिन के पास पहुंच कर उसके दोनों कंधों को पकड़ कर उसे झिंझोड़ा। लिन बौखला कर बाॅस से लिपट गई और अपनी ही रौ में कहने लगी, “आई वाॅन्ट यू। आई वाॅन्ट युअर लव।“
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बाॅस, लिन की बात सुनकर हैरान रह गया। हालांकि वह काफी दिनों से लिन को दाना डाल रहा था। उसका प्रमोशन करना चाहता था। उसने कई संकेत दिये, पर लिन समझते हुए भी न समझी, क्योंकि उसे अपने प्रेमी से बेहद प्यार था।
बाॅस को मन की मुराद मिल गई। उसने तुरन्त फोन तथा मोबाइल फोन के स्विच आॅफ कर दिये। अपने केबिन के अंदर उसे डबल लाॅक कर दिया और लिन को शारीरिक प्रेम करने लगा, जैसे वह कोई अप्सरा हो। लिन को यह एहसास था, कि वह क्या कर रही है और किस शख्स के साथ आनंद लेने की कोशिश कर रही है।
बाॅस का तरसा तन और लिन का प्यासा मन दोनों की तमन्ना एक ही थी। लिन को निर्वस्त्र करने के बाद बाॅस स्वयं भी उसी अवस्था में आ गया।
अब दोनों एक-दूसरे के निर्वस्त्र तन को हसरत भरी निगाहों से देख रहे थे। बाॅस तो अपने अंदर इतना जोश देखकर हैरान था। इससे पहले उसे अपने शरीर में इतना तनाव महसूस नहीं हुआ था। लिन भी अपने बाॅस का सानिध्य पाने के लिए मरी जा रही थी।
माशा अल्लाह लिन पके आम की तरह बाॅस की झोली में गिर गई थी। दोपहर को ही रात का माहौल बाॅस ने अपने केबिन में बना दिया। दोनों एक-दूसरे को ऐसे प्यार कर रहे थे, जैसे जन्मों की प्यासे हों। फिर तो बाॅस ने लिन को ऐसा प्यार में छकाया, कि लिन तो बाॅस की कायल ही हो गई।
एक बार तृप्त होने के बाद लिन मस्ती के आलम में बाॅस से लिपटे हुए बोली, “एक दफा और प्यार का खेल तुम्हारे साथ हो जाये, तो कसम से मजा ही आ जाये।“
“ओह वाय नाॅट, श्योर!“ बाॅस ने कहा और 5 मिनट का समय मांगा।
पांच मिनट में बाॅस ने एक गोली खाई और चिकन सूप पिया। दस मिनट के बाद बाॅस यह सोचकर ही जोश से भरने लगा, कि वह दोबारा एक खूबसूरत व कामुक औरत के साथ एन्ज्वाॅय करेगा।
मन तथा मस्तिष्क में ऐसी उत्तेजना इसलिए आई थी, कि कहीं लिन उससे दूर न चली जाये। अभी करीब है, तो पूरा आनंद बटोर लो। न जाने पुनः कब मौका मिले। मिलेगा भी या नहीं…?
एक तो वियाग्रा का असर, ऊपर से लिन के बेहतरीन यौवन को भोगने का वैलासिक सुख, क्लासिक सिग्रेट के कश लगाने से कम नहीं था। उसने दूसरी दफा भी लिन को अच्छी तरह से तृप्त कर दिया था। बाॅस ने लिन की हड्डियां चटका डाली। करीब 20 मिनट के बाद भी बाॅस ने अपने उत्तेजना रस को निष्कासित नहीं किया, क्योंकि वियाग्रा का असर ऐसा हुआ, कि लिन के मुंह से तौबा!तौबा! निकल गई।
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उस दिन लिन को मालूम हुआ कि काम-सुख होता क्या है। उसका मन हल्का हो गया। उसे परमसुख प्राप्त हुआ था। उसकी चिंता तथा दुख एकदम से गायब हो गये थे। अब उसमें जीने की तमन्ना जाग रही थी। जबकि कुछ समय पहले उसमें जीने की तमन्ना ही मर गई थी। काम करने का दिल नहीं करता था। खोई-खोई सी रहती थी।
“थैंक्स लिन।“ बाॅस ने कहा
इस पर लिन बोली, “थैंक्स तो मुझे आपको कहना चाहिए। वाकई मेरे दिलो दिमाग को बदल कर रख दिया है आपके अनोखे प्रेम के ढंग ने।“
“क्या बात है, मैं कुछ समझा नहीं। पर इतना जरूर समझ गया हूं, कि आप मेरी तारीफ कर रही हैं और औरतें किसी मर्द की तारीफ कम किया करती हैं।“
“ठीक समझा आपने।“ मुस्करा कर बोली लिन, “क्योंकि बहुत कम मर्द औरत को खुश करना जानते हैं।“
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Monday, 22 January 2018

सेक्सी मकान मालकिन और ठरकी किरायेदार Sexy Makan Malkin Or Tharki Kirayedar

यह कहानी आप Hot Story श्रेणी के अंर्तगत पढ़ रहे हैं…
पवन जवान और कड़ियल जिस्म का स्वामी था। पेशे से वह एक पत्रकार था, जो एक मकान में बतौर किराएदार रहता था। जिस मकान में वह रहता था, उस मकान का मालिक था बद्री प्रसाद, जोकि अपनी जवाना खूबसूरत पत्नी के साथ रहता था। उसकी पत्नी का नाम था मंजू। उनके दो बच्चे भी थे।
मंजू लगभग 25 साल की हंसमुख, गोरी-चिट्टी युवती थी। उसका अंग-अंग सांचे में ढला था। उस पर यौवन की ऐसी बहार छायी थी, कि उसकी फीगर देखकर कोई भी नहीं कह सकता था, कि वह दो बच्चों की मां होगी। उसके मस्त सख्त उभार और सही आकार में उठे हुए नितम्ब देखकर मुर्दे में भी जैसे जान आ जाती थी।
मंजू और उसका पूरा परिवार मकान के निचले हिस्से में रहता था, जबकि ऊपर वाले हिस्से में पवन किराये पर अकेला रहता था। पवन को शेरो-शायरी का भी शौक था। इसके अलावा वह कथा-कहानियां भी लिखता था। उसकी कथा-कहानियां काफी रोमांटिक होती थीं। उसकी कहानियांे में नायिका यानी लड़की का किरदार मेन होता था। खूबसूरत शबाब और महकती शराब उसकी कमजोरी थी।
पवन के चेहरे और उसकी आंखों में एक अजीब-सी चमक थी, खास कशिश थी। जब वह किसी युवती से आंखों में आंखें डालकर बातें करता था, तो युवती उसकी तरफ खिंची चली जाती थी। रही-सही कसर पवन की रोमांटिक कहानियां पूरी कर देती थीं।
पवन की जबरदस्त पर्सनेलिटी पर मदहोश होकर जब कोई युवती उसकी कोई कहानी पढ़ती, तो उसकी हालत वैसी हो जाती, जैसे ब्लू फिल्म देखकर किसी जवान लड़के या लड़की की हो सकती है।
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पवन को इस नए मकान में आये हुए कुछ ही दिन हुए थे, लेकिन उसके आकर्षक चेहरे और पर्सनेलिटी का जादू मंजू पर चढ़ा साफ महसूस हो रहा था। मंजू, पवन पर फिदा थी। वह उसकी शेरो-शायरी की खूब तारीफ करती थी।
पवन ने खुद का लिखा एक रोमांटिक उपन्यास भी उसे पढ़ने के लिए दिया था। इस उपन्यास ने मंजू को नीचे से ऊपर तक भीगा कर रख दिया था। उसकी कल्पना में पवन जैसा मर्द थिरक रहा था। उसे ऐसे ही साथी की तलाश थी, जो उसके जिस्म की जरूरतों को पूरा कर सके और उसकी नस-नस को तृप्त कर सके।
हालांकि मंजू का पति बद्री प्रसाद भी जवान और हट्टा-कट्टा था, लेकिन वह पवन की तरह हंसमुख नहीं था। वह बहुत शांत और गंभीर किस्म का इंसान था। दूसरी ओर पवन बात-बात पर हंसी मजाक करने वाला और खुलकर हंसने हंसाने वाला था।
ऐसे ही वक्त गुजरता गया….
उस दिन सोमवार था। आज पवन आॅफिस नहीं गया था। उसकी तबियत कुछ ठीक नहीं थी। वह अपने कमरे में बैठा कुछ लिख रहा था कि तभी वहां मंजू आ गयी। उसने नहा-धोकर खूबसूरत साड़ी पहनी थी। उसकी सुंदरता और निखर उठी थी। पवन ने आहट भांप कर नजर उठायी, तो वह उसे देखता रह गया…
‘‘पत्रकार साहब, ग्यारह बज गये हैं। आॅफिस नहीं जाना है क्या?’’ कहते हुए मंजू कमरे के अंदर आ गयी।
पवन ने उसे सोफे पर बैठने के लिए कहकर उसे एक शायरी सुनाई और कहा, ‘‘आज मेरी तबियत ठीक नहीं है, इसलिए मैं आॅफिस जा नहीं सका। वैसे भी आज मैं एक खास सब्जेक्ट पर अपनी रिपोर्ट तैयार कर रहा हूं। अच्छा हुआ कि आप यहां आ गयीं। मैं आपसे कुछ पूछना चाहता हूं, प्लीज आप बुरा मत मानना।’’
‘‘ऐसी क्या बात है, जिससे मैं बुरा मान जाऊंगी?’’ मंजू ने हंसकर कहा और सोफे पर बैठ गयी।
पवन ने अपना चेहरा ऊपर उठाया और मंजू की आंखों में झांकते हुए बोला, ‘‘दरअसल, मैं सेक्स पर एक रिपोर्ट तैयार कर रहा हूं। आपकी नजर में सेक्स कितना इम्पोर्टेन्ट है?’’
मंजू ने कोई जवाब नहीं दिया। हौले से मुस्करा कर रह गई बस। इसपर पवन बोला,‘‘मंजू जी, अब सेक्स कोई छिपने-छिपाने वाली बात नहीं रह गयी है। सरकार ने भी उसे स्वीकार कर लिया है। सेक्स को खास सबजेक्ट मानकर आजकल तो स्कूल और काॅलेजों में भी शामिल कर लिया गया है। ऐसे में आप जैसी पढ़ी-लिखी आज के नये जमाने की युवती संकोच करे, तो ठीक नहीं लगता। प्लीज, आप बतायें कि सेक्स कितना जरूरी है?’’
‘‘यह उतना ही जरूरी है, जितना पेट भरने के लिए खाने की जरूरत होती है।’’ मंजू ने हौले से कहना शुरू किया, ”जिस तरह भूख लगने पर खाली पेट होने से इंसान चिड़चिड़ा हो जाता है। जीवित नहीं रह सकता, ठीक उसी तरह चाहे वह औरत हो या मर्द, जिस्मानी जरूरतें पूरी न होने पर अशांत और जानवर जैसा हो जाता है, मन भटक जाता है और यहां तक कि बलात्कार जैसे संगीन अपराध भी कर बैठता है। इसलिए मेरे लिए सेक्स की जरूरत पूरी होना आवश्यक नहीं, परम आवश्यक है।“ कहकर मंजू ने अपनी नजरें झुका लीं।
पवन ने आगे बढ़कर अपने हाथों से उसका चेहरा ऊपर उठाया। फिर उसकी नशीली आंखों में झांकते हुए पूछा, ”आप तो बहुत उस्ताद निकलीं… आपके पति भी इतने ही एक्सपर्ट हैं इस मामले में।“ फिर अचानक अपनी बात को घुमाकर पूछा पवन ने, ”मेरा मलतब है क्या आपके पति आपकी सेक्स जरूरतों को पूरा कर पाते हैं? आप उनसे कितना संतुष्ट रहती हैं?“
मंजू की झिझक दूर हुई, तो वह कहती चली गयी। उसने बताया कि वह जिस तरह से संतुष्ट होना चाहती है, उसमें उसका पति फिसड्डी साबित होता है। उसे सेक्स में पूरा मजा नहीं आता। वह एक औरत होने के बावजूद अपनी शर्म और संकोच को छोड़ कर अलग-अलग कामुक पोजिशन पति से प्यार हासिल करना चाहती है। मगर पति की ओर से पूरी तरह सहयोग ना मिल पाने के कारण रोज सेक्स करने के बावजूद भी कुछ कमी सी रह ही जाती है।
”क्या आप पराए पुरूष से संबंध स्थापित करना चाहती हैं?“
”नहीं…।“ तपाक से बोली मंजू, ‘‘बिल्कुल नहीं।’’
”अगर कोई मर्द आपसे प्यार करता है और वह आपके साथ सेक्स करना चाहता है, तो क्या आप उसकी बात मान लेंगी?“
”कहा ना नहीं….कभी भी नहीं।“
इसके बाद पवन ने मंजू को कुरेदना शुरू कर किया, तो जल्दी ही उसकी जुबान पर यह बात आ गयी कि वह उसे अच्छा लगता है। पवन ने अपने उल्टे-सीधे सवालों से जाने-अनजाने मंजू को गरम कर दिया था। मंज की आंखों में वासना के रंगीन डोरे मचल रहे थे। चेहरा शर्म और सेक्स की आग से लाल हो गया था।
वह जिस तरह से बहकी-बहकी आवाज में जवाब दे रही थी, मालूम हो रहा था उसके प्यासे अरमान भी धीरे-धीरे जागने लगे थे। माने जैसे वह खुद पर काबू पाने की कोशिश कर रही थी, कि कहीं गलती से गलती न हो जाये…
शायद इसीलिए वह बात को टालने की गरज से बोली थी, “अब आपके सवाल पूरे हुए कि नहीं हुए?“ वह नजरें चुराती हुई बोली ”अब बस हो गया…बंद कीजिए यह टाॅपिक।“
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”टाॅपिक बंद करने से, जो तन की आग भड़क चुकी है, वह तो शांत नहीं हो होगी ना? वो तो बुझाने से ही शांत होगी मंजू जी।“ वह मंजू की आंखों में आंखें डालते हुए बोला, ”क्यों, सही कह रहा हूं ना?“
”देखिए पवन जी…।“
”हां, तो दिखाइए मंजू जी।“ शरारत भरे अंदाज में बोला पवन, ”हम तो देखने के लिए कब से मरे जा रहे हैं।“
”क्या मतलब है आपका?“ बनावटी गुस्सा दिखाती हुई बोली मंजू, ”सब समझ रही हूं मैं तुम्हारा इशारा?“
”इसी बात के तो कायल हैं हम आपके मंजू जी।“ अचानक मंजू को बांहों में भरते हुए बोला पवन, ”आप मतलब की बात समझ बड़ी जल्दी जाती हैं।“
फिर मंजू के सुंदर मुखड़े को अपनी दोनों हथेलियों के बीच में लेते हुए बोला पवन, ”और जब समझ ही गई हो, तो हमें भी समझा दो कि आपके दिल में वो नहीं चल रहा, जो इस वक्त मेरे दिल में और न जाने कहां-कहां चल रहा है।“
”कहां कहां चल रहा है बताओ?“ अब मंजू भी बहकने लगी और चुटकी लेते हुए बोली, ”जहां चल रहा है, वहां बैठा दीजिए। बेकार में थक गया तो निठल्ला होकर सो जायेगा।“
कहकर जोरों से हंस पड़ी मंजू। उसकी इस अदा पर मर ही मिटा पवन। फिर पवन ने शर्म और झिझक को साईड किया और झट से मंजू को बांहों में भर लिया और जोर से उसके सख्त उभारों को मसल कर उसके गुलाबी होंठों को चूम लिया।
”मि. आप अपनी लिमिट को क्राॅस कर रहे हैं।“ मंजू हौले से मुस्करा कर बोली, ”अपनी लिमिट में रहें प्लीज।“
”झूठ न बोलें आप मंजू जी।“ मजाकिया भरे स्वर में बोला पवन, ”मेरी ‘लिमिट’ तो मेरी पैन्ट के अंदर ही है। जब तुम्हारी गुलाबी देह में उतरकर ‘लिमिट’ क्राॅस करूंगा, तब करियेगा शिकायत। फिलहाल तो आपकी लिमिट क्राॅस होने का इंतजार है मुझे।“
”अनाड़ी राईटर जी इतना भी नहीं जानते कि किसी औरत की प्यास को हवा देकर यूं बेकार की बातों में टाईम खोटी नहीं किया करते?“ अब मंजू भी खुल गई और उसने पवन के गले में अपनी गोरी बांहों को हार डाल दिया, ”कर दो मेरी देह में अपनी ‘लिमिट’ क्राॅस...“
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Monday, 27 November 2017

मेरा वो पहला मजा Mera Wo Pehla Maja

मुझे अपना पहला मिलन, वो पहला एहसास आपके साथ शेयर करने में थोड़ा संकोच हो रहा है, जब मैंने पहली बार किसी स्त्री को अपने एकदम समीप वो भी पूर्ण निर्वस्त्र देखा व उस निर्वस्त्र स्त्री से भरपूर पहला मिलन का आनंद लिया था।
दरअसल मित्रों वो स्त्री कोई गैर नहीं, बल्कि मेरी अपनी सगी चाची थी, जो मेरी हमउम्र थी।
मित्रों मेरा नाम विरेन है और अब मैं आपको शुरू से व विस्तार से बताता हूं कि आखिर कैसे मैं अपनी ही सगी चाची से प्यार कर बैठा और वो सबकुछ कर बैठा, जो मेरे चाचा, चाची साथ करते रहे होंगे।
घर में उस रोज सब बेहद खुश थे। हम सब भाई-बहन व मेरे माता-पिता मिलकर गांव जाने की तैयारियां कर रहे थे। दरअसल मेरे चाचा की शादी थी गांव में। मैं अपने भाई-बहनों में सबसे बड़ा था और मेरी उम्र 16 साल की थी।
हम सब लोग शादी के तीन हफ्ते पहले ही गांव चले गये थे। केवल चाचा ने अपनी शादी के एक हफ्ते पहले आना था, उनको आॅफिस से छुट्टी नहीं मिल पाई थी।
गांव में पहुंच कर बहुत अच्छा लगा। वो गांव की हरियाली, शुद्ध हवा व मीठा शीतल पानी।
दरअसल मैं पहाड़ी क्षेत्र का रहने वाला हूं, इसलिए मेरा गांव पहाड़ से संबंधित है और आप तो जानते ही होंगे मित्रों गांव की आबो हवा व वहां वातावरण कैसा होता है…?
गांव में सुबह उठकर जब मैं नहाने के लिए झरने में जाता था, तब वहां पर कई गांव की औरतें व खूबसूरत लड़कियां वस्त्र धोने व गगरी में पानी भरने आती थीं।
सच कहूं, मित्रों उस समय मेरा नहाने में कम और उन जवान सुंदर लड़कियों को देखने में ज्यादा ध्यान होता था। गांव की अल्हड़ लड़कियां जब पानी भरकर गगरी उठाने के लिए झुकती थीं, तो नुमाया हो रहे यौवन रूपी कलशों का नज़ारा देखकर मेरा मन बेचैन हो उठता था। मन करता कि बस एक बार उस लड़की का प्यार अकले में पा लूं, तो बस मजा ही आ जाये।
लेकिन क्या कहूं यारों, अपने मन के ‘अरमान’ को अपने ही ‘हाथों’ कुचलना पड़ता था। मैं रोज नहाने झरने पर जाता और रोज लड़कियों को देखकर केवल आंहें भरता और आ जाता।
सोचता, कभी तो वो वक्त आयेगा, जब मेरी भी कोई गर्लफ्रैंड होगी या कोई ऐसी स्त्री या लड़की होगी, जो मुझसे प्रेम करेगी और मैं उसके साथ वो सब करूंगा, जो झरने के पास आने वाली लड़कियों के बारे में मैं मन-ही-मन कल्पना करता था।
खैर ठंडी आंहें भरते हुए ही दिन गुजरने लगे और चाचा की शादी के दिन नजदीक आने लगे। चाचा की शादी को अब एक हफ्ते रह गये और चाचा भी अब तक गांव पहुंच गये थे।
चाचा और मेरे बीच सात साल का अंतर था। हम दोनों में दोस्तों जैसा व्यवहार था, जिस कारण हम लगभग अपनी हर पर्सनल बातें आपस में शेयर कर लेते थे। मैं भी चाचा को उनकी शादी को लेकर व आने वाली नई दुल्हन को लेकर चाचा से हंसी-ठिठोली करता रहता था।
चाचा भी मुझसे खुलकर बातें करते थे और मुझसे मेरी गर्लफ्रैंडों व गांव की लड़कियों के बारे में कुछ न कुछ पूछते ही रहते थे।
एक रोज इसी प्रकार मैंने भी चाचा से हंसी-मजाक के बीच कह दिया, “अब तो चाचा…।“
“अब तो क्या बे?“ चाचा मेरी ओर देखकर बोले।
“चाची के सपने देख रहे होंगे आप।“ मैं छेड़ते हुए बोला, “क्यों, सच कह रहा हू न मैं?“
“अबे ज्याद न बोल समझा। चाचा हूूं तेरा, कोई लंगोटिया यार नहीं हूं।“
“अरे चाचा बता भी दो, क्यों भाव खा रहे हो।“
“हां ले रहा हूं सपने, तुझे कोई एतराज है?“
“मुझे क्या एतराज होगा चाचा।“ मैं चाचा को कोहनी मारते हुए बोला, “चाची के सपने लो या चाची की…।“
“चाची की क्या बे।“ चाचा मुस्कराते हुए मेरे कान पकड़ कर बोले, “ज्यादा ही ओपन हो रहा चाचा से अपने।“
“अरे मेरे ओपन होने से क्या होता है, ओपन तो जब चाची होगी आपके सामने मजा तो तब आयेगा।“
“मुझे मजा आये न आये, तू पहले मजे ले ले।“ चाचा मुस्कराते हुए बोले, “वैसे तू क्यों इतना बावला हो रहा है चाची को लेकर?“
“भला मैं क्यों चाची को लेकर बावला होने लगा। मैं तो गांव की गोरियों को देखकर बेसुध हो जाता हूं। जी करता है कि बस…“
“क्या जी करता है बेटे?“ चाचा भी मुस्करा के बोलते, “बेटे अपने ‘जी’ को संभाल और फिलहाल अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे और इस समय मेरी शादी पर ध्यान दे, लड़कियों पर नहीं। वैसे भी बहुत काम हैं शादी में।“
“ये तो सही कहा चाचा आपने। काम तो वाकई बहुत हैं।“
फिर हमारी हंसी-ठिठोली यहीं समाप्त हो गई और हम सब शादी की तैयारियों में व्यस्त हो गये।
निश्चित समय पर चाचा की शादी हो गई और हम लोग दुल्हन को यानी रिश्ते में मेरी चाची को लेकर घर आ गये।
क्या बताऊं मित्रों चाची क्या थी, अप्सरा थी अप्सरा। मेरे दिल की सुनों, तो मेरे लिए वो अप्सरा से भी कहीं बढ़कर स्वप्न सुंदरी थी। मैं मन ही मन चाचा की किस्मत पर नाज करने लगा और थोड़ी-थोड़ी जलन भी होने लगी।
मन में आने लगा कि, काश! ये लड़की मेरी झोली में डाल देता भगवान, तो मेरी लाॅटरी ही निकल जाती। मगर ऐसा नहीं हो सकता था, वो तो मेरी चाची बनकर मेरे सामने आई थी।
चाचा की शादी हो चुकी थी और चाची भी घर आ गई थी। मेहमान धीरे-धीरे जा चुके थे। मेरे चाचा और चाची की सुहागरात भी हो गई।
अगली सुबह जब चाचा अपने कमरे से निकले तो मैं मन ही मन उन्हें देखकर सोचने लगा, कि हाय क्या-क्या हुआ होगा रात को सुहागकक्ष में….
मौका पाकर मैंने चाचा से छेड़ की, “हाल कैसा है जनाब का?“
“मेरे हाल तो ठीक है, मगर तेरी आंखें देखकर लगता है तेरे हाल ठीक नहीं हैं।“
“हां चाचा वो रात को जरा देर से सोया था न, इसलिए नींद पूरी नहीं हुई।“
“अबे देर से तो मैं भी सोया था, मेरी आंखें तो ऐसी नहीं हो रहीं।“
“तुमन तो साक्षात् जलवा देखा होगा, मैं तो कवेल ख्यालों में ही जलवा देखकर खोया रहा और जागता रहा। सुहागरात आपकी थी, जाग मैं रहा था।“
सुनकर चाचा हंस पड़े और मैं भी हंसे बिना नहीं रह पाया….
खैर इसी प्रकार दिन बीतने लगे और हम सब लोग शहर अपने घर आ गये। चाचा हमारे साथ ही रहते थे, सो चाची भी यहीं हमारे घर पर रहने लगी थी।
चाचा की शादी को तीन माह बीत गये थे। इस बीच चाची और मैं काफी घुल-मिल गये थे। चाची और मैं हमउम्र थे। मेरी चाची का नाम कोमल था।
मेरी चाची की एक बात थी, वो जब भी मुझसे बात करती तो एकदम नजरों से नजरें मिलाकर करती थी। उनकी कजरारी आंखें जब मेरी आंखों से मिलती, मेरा दिल जोरों से धड़कने लगता।
चाची और मेरे बीच काफी हंसी-मजाक होता था। मैं चाची को बहुत हंसाया करता था। चाची इतना हंसती, कि पेट पकड़ कर लोट-पोट हो जाती। फिर कहती, “बस कर, हंसा-हंसा के क्या मार डालेगा।“
अब मित्रों मैं आपको उस रोज की बात बताता हूं, जिसको जानने के लिए आप भी उत्सुक होंगे।
उस रोज चाची और मैं घर में अकेले ही थे। मेरे माता-पिता व चाचा जी गांव में दो-तीन दिन के लिए किसी रिश्तेदार की शादी में शामिल होने गये थे। हम भाई-बहन व चाची घर में रह गई थी।
चाची इसलिए नहीं गई, कि कोई खाना बनाने के लिए व हमारी देखभाल के लिए भी घर में चाहिए था।
उस रोज मैं स्कूल नहीं गया था। मैंने सिर दर्द का बहाना बना लिया था, दरअसल मैं चाची के साथ ज्यादा से ज्यादा वक्त बिताना चाहता था। शायद मैं चाची को मन ही मन चाहने लगा था।
मेरे भाई-बहन स्कूल चले गये थे। दोपहर के लगभग 12 बजे का समय रहा होगा, जब चाची मेरे पास आई और बोली, “विरेन तेरे सिर में ज्यादा दर्द हो रहा है, तो डिस्प्रिन दे दूं। वरना मैं फिर नहाने जा रही हूं। उसके बाद ही कोई काम करूंगी।“
चाची के गुलाबी होंठों से ‘नहाना’ शब्द सुनकर मेरे मन के तार झनझना उठे। मैंने चाची से कहा, “चाची जो कमाल आपके हाथों में है, वो डिस्प्रिन में कहा।“
“मतलब।“ चाची ने पूछा।
“मतलब अगर नहाने से पहले थोड़ी देर मेरा सिर दबा दें, तो सिर दर्द में कुछ आराम आ जाये।“
“तभी तो पूछ लिया मैंने तुझे।” चाची मेरे पास आई और मेरे गालों पर हाथ फेरते हुए बोली, ”तू मुझसे शरमा रहा था क्या?”
चाची ने मुझे छुआ, तो एकाएक मेरा चंचल ‘जानवर’ अंदर ही अंदर चहल-कदमी करने लगा। मैंने उस वक्त अपने आपको संभाला और पूछा, ”आप क्या पूछना चाह रही हैं चाची? किस बात से शरमाऊंगा मैं?“
”जब मैंने तुझे पूछा, तब तूने कहा कि मेरा सिर दुख रहा है दबा दो।” चाची मुस्कराई और बोली, ”पहले नहीं बोल सकता था। मैं क्या मना कर देती।”
”काश! उस चीज के लिए भी ‘हां’ कह दो कभी।” मैं दबी आवाज में धीरे से बोला।
”क्या?” चाची ने जैसे मेरी बात सुन ली थी, ”क्या चीज कह रहा है तू?”
“क..क..कुछ नहीं चाची।” मैं सकपकाता हुआ बोला, ”आप नहालो, मुझे केवल सिर दर्द का बाम थमा दो। मैं खुद ही सिर पर मल लूंगा।”
“ठीक है फिर खुद ही लगा ले।” चाची भी जानबूझ कर दिललगी करती हुई मुस्कराई और बोली, ”मैं तो चली नहाने।“
पता नहीं कहां से मुझमें हिम्मत आई और मैंने एकाएक चाची का हाथ पकड़ लिया और बोला, ”मत जाओ न छोड़कर।”
चाची मेरी ऊपर आते-आते गिरती हुई बची। मगर फिर भी वह काफी हद तक मेरे बदन से छू चुकी थी। उनके अंग-प्रत्यंग जाने-अन्जाने मेरे बदन से छू गये थे, जिससे मुझे बड़ा रोचक आनंद आया था।
चाची ने भी शायद मेरी दशा भांप ली थी। मगर फिर भी बात को नजरअंदाज करती हुई बोली, ”अभी तो खुद ही नखरे कर रहा था कि खुद लगा लूंगा बाम। अब क्या हुआ? और मैं वाॅशरूम जा रही हूं नहाने, कोई घर छोड़कर नहीं जा रही हूं।” इस बार चाची ने मेरी आंखों में झांकते हुए बोला, ”वैसे तेरे चाचा की पकड़ और तेरी पकड़ एक जैसी है। वो भी इसी तरह रात को जोर लगा कर…”
फिर चाची एकाएक चुप हो गई। शायद समझ गई थी कि वह अपने भतीजे से क्या कह रही है…?
”आगे कहो न चाची।” मैं भी उत्साहित होकर बोला, ”जोर लगाकर क्या?”
”चुप हो जा।” चाची दूसरी ओर मुंह करके अपनी हंसी छिपती हुई बोली, ”अभी तो तेरे सिर में दर्द हो रहा था। अब क्या हुआ, मेरी बातों में तुझे बड़ा मजा आ रहा है।“
”बातों में तो कम से कम मजा लेने दो चाची।” मेरे मुंह से भी निकल गया, ”मेरा मतलब मैं अभी कुंवारा हूं न, इसलिए शादी के बाद क्या होता है, उस बात से अन्जान हूं। अभी आपसे बात करके जान लूंगा, तो भविष्य में परेशानी नहीं आयेगी।”
”ज्यादा बातें न बना।” चाची नाटकीय नाराजगी दिखाती हुई बोली, ”जब शादी का वक्त आयेगा, तब अपने आप सब समझ आ जायेगा। अभी पढ़ाई पर ध्यान दो…”
”अच्छा चाची एक बात बताओ।” मैं अब थोड़ा-थोड़ा खुलने लगा था, “अभी जब आप मेरे ऊपर गिरीं जब मैंने आपका हाथ पकड़ कर रोका, तो मुझे बहुत ही अजीब सा लगा। आपके शरीर के हिस्से मुझे स्पर्श हुए तो ऐसा लगा मानो जिंदगी की सबसे बड़ी खुशी और मजा इसी में है। ये क्या था…? ऐसा क्यों हुआ? क्या आपको भी हुआ…अभी ऐसा, जैसा मुझे हुआ?”
”चुपकर पगले।” चाची मेरे होंठों पर अंगुलि रखती हुई बोली, ”चाची से ऐसी बातें नहीं पूछा करते। वैसे बढ़ती उम्र के साथ ऐसा होता है।” फिर चाची उठी और बाथरूम की ओर जाती हुई बोली, ”अच्छा अब चली मैं नहाने। तू सोचता रह, जो तूने सोचना है।”
फिर चाची बाथरूम में घुस गई और नहाने लगी। साथ ही वह बेहद भड़कीला गीत भी गुनगुना रही थी…”कभी मेरे साथ कोई रात गुजार।“
मैं चाची की आवाज को सुनकर बिस्तर पर ही लेटा-लेटा उत्तेजित हो रहा था। साथ ही सोचता जा रहा था, चाची इस समय बाथरूम में बिल्कुल निर्वस्त्र होगी। कैसे-कैसे अपने गोरे खिले हुए कबूतरों पर साबुन मल-मल कर रगड़ रही होगी। पानी भी कभी उनकी संकरी ‘प्रेमगली’ से गुजरता होगा, तो कभी पीछे की गलियारी से अपना रास्ता खोजता हुआ बाथरूम की नाली में मिल जाता होगा।”
अभी मैं ये सब सोच ही रहा था, कि एकाएक चाची ने बाथरूम के अंदर से ही कहा, ”अरे विरेन।”
मैं तुरन्त दौड़ता हुआ बाथरूम के दरवाजे के बाहर पहुंच कर बोला, ”हां चाची।”
”वैसे मुझे भी कुछ-कुछ हुआ था, ऐसा कुछ हुआ था, जो तेरे चाचा के छूने पर भी नहीं होता मुझे।“
और बाथरूम में चाची के हंसने की खिलखिलाहट मुझे सुनाई देने लगी।
ये सुनकर तो मेरे पूरे तन के तार झनझना उठे। अब तो मेरे सब्र का बांध टूट गया था। मैंने जोर से दरवाजा पीटा..
”अरे क्या हुआ?“ चाची अब भी हंस रही थी, ”अभी तक यहीं खड़े हो?“
”चाची न जाने कबसे खड़ा है, तुम्हें क्या पता।” मैं जानबूझ कर दो अर्थों वाली भाषा में बोला, ”मेरा मतलब तुम्हारा दीवाना कबसे इस आस मंे बाथरूम के बाहर खड़ा है, कि दरवाजा खुले और तुम मुझे खींच कर बाथरूम के अंदर ले ले और…”
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